यह एक आश्चर्य का विषय है कि लोक में प्रचलित कुछ उक्तियाँ आमजन सहित महान रचनाकारो द्वारा वास्तविक अर्थों को ग्रहण किये बिना शब्दशः अर्थ लेकर अगली पीढ़ी तक पहुंचा दिए जाते हैं . ”रामायण’ के ‘सीता-हरण’ प्रसंग के सम्बन्ध में श्री लक्ष्मण द्वारा पंचवटी में एक रेखा खींचकर माता सीता की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी ऐसा ही लोकप्रसिद्ध प्रलाप प्रतीत होता है . वेदतुल्य प्रतिष्ठा प्राप्त इस भूतल का प्रथम महाकाव्य श्रीमद वाल्मीकि जी द्वारा सृजित किया गया है .महाकवि द्वारा रची गयी रामकथा लोक में इतनी प्रसिद्द हुई कि आने वाले कवियों ने इस कथा को अपने अपने ढंग से पाठकों व् भक्तों के सामने प्रस्तुत किया पर सर्वाधिक प्रमाणिक ”श्रीमद्वाल्मीकि रामायण ” ही है . ”सीता-हरण’ के प्रसंग में आदिकवि ने अपने इस महाकाव्य में कहीं भी ‘लक्ष्मण -रेखा’ का उल्लेख नहीं किया है .माता सीता द्वारा मार्मिक वचन कहे जाने पर श्री लक्ष्मण अपशकुन उपस्थित देखकर माता सीता को सम्बोधित करते हुए कहते हैं -”रक्षन्तु त्वाम…पुनरागतः ”[श्लोक-३४,अरण्य काण्ड , पञ्च चत्वाविंशः ] अर्थात -विशाललोचने ! वन के सम्पूर्ण देवता आपकी रक्षा करें क्योंकि इस समय मेरे सामने बड़े भयंकर अपशकुन प्रकट हो रहे हैं उन्होंने मुझे संशय में डाल दिया है . क्या मैं श्री रामचंद्र जी के साथ लौटकर पुनः आपको कुशल देख सकूंगा ?” माता सीता लक्ष्मण जी के ऐसे वचन सुनकर व्यथित हो जाती हैं और प्रतिज्ञा करती हैं कि श्रीराम से बिछड़ जाने पर वे नदी में डूबकर ,गले में फांसी लगाकर ,पर्वत-शिखर से कूदकर या तीव्र विष पान कर ,अग्नि में प्रवेश कर प्राणान्त कर लेंगी पर ‘पर-पुरुष’ का स्पर्श नहीं करेंगी .[श्लोक-३६-३७ ,उपरोक्त] माता सीता की प्रतिज्ञा सुन व् उन्हें आर्त होकर रोती देख लक्ष्मण जी ने मन ही मन उन्हें सांत्वना दी और झुककर प्रणाम कर बारम्बार उन्हें देखते श्रीरामचंद्र जी के पास चल दिए .[श्लोक-39-40 ] .स्पष्ट है कि लक्ष्मण जी ने इस प्रसंग में न तो कोई रेखा खींची और न ही माता सीता को उस रेखा को न लांघने का निर्देश दिया .तर्क यह भी दिया जा सकता है कि यदि कोई रेखा खींचकर माता सीता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती थी तो लक्षमण माता सीता को मार्मिक वचन बोलने हेतु विवश ही क्यों करते .वे श्री राम पर संकट आया देख-सुन रेखा खेंचकर तुरंत श्री राम के समीप चले जाते अथवा यहाँ यह तर्क भी असंगत प्रतीत होता है श्री लक्ष्मण पंचवटी में माता सीता को अकेला छोड़कर जाते तो श्री राम की आज्ञा का उल्लंघन होता .यदि एक रेखा खींचकर ही माता सीता की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती थी तो श्री राम मृग के पीछे अकेले क्यों जाते ?अथवा ये निर्देश क्यों देते -”प्रदक्षिणेनाती ….शङ्कित: ‘ [श्लोक-५१ ,अरण्य काण्ड ,त्रिचत्वा रिनश: ] -”लक्ष्मण !बुद्धिमान पक्षी राज गृद्धराज जटायु बड़े ही बलवान और सामर्थ्यशाली हैं .उनके साथ ही यहाँ सदा सावधान रहना .मिथिलेशकुमारी को अपने संरक्षण में लेकर प्रतिक्षण सब दिशाओं में रहने वाले राक्षसों की और चैकन्ने रहना .” यहाँ भी श्रीराम लक्ष्मण जी को यह निर्देश नहीं देते कि यदि किसी परिस्थिति में तुम सीता की रक्षा में अक्षम हो जाओ तो रेखा खींचकर सीता की सुरक्षा सुनिश्चित कर देना . इसी प्रकार श्री वेदव्यास जी द्वारा रचित ”अध्यात्म रामायण’ में भी ‘सीता-हरण’ प्रसंग के अंतर्गत लक्ष्मण जी द्वारा किसी रेखा के खींचे जाने का कोई वर्णन नहीं है .माता सीता द्वारा लक्ष्मण जी को जब कठोर वचन कहे जाते हैं तब लक्ष्मण जी दुखी हो जाते हैं यथा -‘इत्युक्त्वा ……….भिक्षुवेषधृक् ”[श्लोक-३५-३७,पृष्ठ -१२७] ”ऐसा कहकर वे (सीता जी ) अपनी भुजाओं से छाती पीटती हुई रोने लगी .उनके ऐसे कठोर शब्द सुनकर लक्ष्मण अति दुखित हो अपने दोनों कान मूँद लिए और कहा -‘हे चंडी ! तुम्हे धिक्कार है ,तुम मुझे ऐसी बातें कह रही हो .इससे तुम नष्ट हो जाओगी .” ऐसा कह लक्ष्मण जी सीता को वनदेवियों को सौपकर दुःख से अत्यंत खिन्न हो धीरे-धीरे राम के पास चले .इसी समय मौका समझकर रावण भिक्षु का वेश बना दंड-कमण्डलु के सहित सीता के पास आया .” यहाँ कहीं भी लक्ष्मण जी न तो रेखा खींचते हैं और न ही माता सीता को उसे न लांघने की चेतावनी देते हैं . तुलसीदास जी द्वारा रचित ”श्रीरामचरितमानस” में भी सीता-हरण के प्रसंग में लक्ष्मण जी द्वारा किसी रेखा के खींचे जाने का उल्लेख नहीं है .अरण्य-काण्ड में सीता -हरण के प्रसंग में सीता जी द्वारा लक्ष्मण जी को मर्म-वचन कहे जाने पर लक्ष्मण जी उन्हें वन और दिशाओं आदि को सौपकर वहाँ से चले जाते हैं – ”मरम वचन जब सीता बोला , हरी प्रेरित लछिमन मन डोला ! बन दिसि देव सौपी सब काहू ,चले जहाँ रावण ससि राहु !” [पृष्ठ-५८७ अरण्य काण्ड ] लक्ष्मण जी द्वारा कोई रेखा खीचे जाने और उसे न लांघने का कोई निर्देश यहाँ उल्लिखित नहीं है . वास्तव में ”लक्ष्मण -रेखा का सम्बन्ध पंचवटी में कुटी के द्वार पर खींची गयी किसी रेखा से न होकर नर-नारी के लिए शास्त्र दवरा निर्धारित आदर्श लक्षणों से प्रतीत होता है .यह नारी-मात्र के लिए ही नहीं वरन सम्पूर्ण मानव जाति के लिए आवश्यक है कि विपत्ति-काल में वह धैर्य बनाये रखे किन्तु माता सीता श्रीराम के प्रति अगाध प्रेम के कारण मारीच द्वारा बनायीं गयी श्रीराम की आवाज से भ्रमित हो गयी .माता सीता ने न केवल श्री राम द्वारा लक्ष्मण जी को दी गयी आज्ञा के उल्लंघन हेतु लक्ष्मण को विवश किया बल्कि पुत्र भाव से माता सीता की रक्षा कर रहे लक्ष्मण जी को मर्म वचन भी बोले .माता सीता ने उस क्षण अपने स्वाभाविक व् शास्त्र सम्मत लक्षणों धैर्य,विनम्रता के विपरीत सच्चरित्र व् श्री राम आज्ञा का पालन करने में तत्पर देवर श्री लक्ष्मण को जो क्रोध में मार्मिक वचन कहे उसे ही माता सीता द्वारा सुलक्षण की रेखा का उल्लंघन कहा जाये तो उचित होगा .माता सीता स्वयं स्वीकार करती हैं- ” हा लक्ष्मण तुम्हार नहीं दोसा ,सो फलु पायउँ कीन्हेउँ रोसा !” [पृष्ठ-५८८ ,अरण्य काण्ड ] निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि लक्ष्मण रेखा को सीता-हरण के सन्दर्भ में उल्लिखित कर स्त्री के मर्यादित आचरण-मात्र से न जोड़कर देखा जाये .यह समस्त मानव-जाति के लिए निर्धारित सुलक्षणों की एक सीमा है जिसको पार करने पर मानव-मात्र को दण्डित होना ही पड़ता है .तुलसीदास जी के शब्दों में – ”मोह मूल मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ ” शिखा कौशिक ‘नूतन’
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