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नफरत दिल में भरते ये ; ज़हरीले अंगारें हैं ,
नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !
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कुटिल स्वार्थ -सिद्धि हेतु लौह पुरुष को पूज रहे ,
प्रतिमा लोहे की बना बना अवसरवादी कूद रहे ,
ये चले लूटने यश उनका जो जनता के प्यारे हैं !
नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !
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खून सने हाथों में ‘नूतन’ खिला कमल का फूल कभी ?
अभिमानी कपट वेश धर कर बने राम के भक्त सभी ,
किस किस का नाम बताएं हम रावण सारे के सारे हैं !
नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !
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गांधी को गाली देते ; नेहरू को कहते चरित्र-हीं ,
कहते खुद को हैं राष्ट्र भक्त पर निज भक्ति में रहें लीन,
इन्हें जनता सबक सिखाती जब दिख जाते दिन में तारे हैं !
नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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