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श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !

! अब लिखो बिना डरे !
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साकेत खंडर हो रहा लंका का नव श्रृंगार है ,
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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लक्ष्मण -भरत सम भ्रात न सीता के सम हैं भार्या ,
मर्यादी अब पुरुष नहीं न शीलमयी नारियां ,
आनंद जीवन में नहीं हर ओर हाहाकार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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क्रोध ,लोभ ,माया-मोह संयम पे हावी हो गए ,
भरी तिजोरी पाप की पुण्य भिखारी भये ,
झूठ के समक्ष सत्य की सर्वत्र हार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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हैं कहाँ गुरु वशिष्ठ जो भरते संस्कार ,
हो रहे विद्यालयों में भी आज दुराचार ,
सदाचरण क्षत -विक्षत मन में चीत्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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दंड देगा कौन राजा बन गए खुद चोर हैं ,
लूटकर सबको मचाता खुद लुटेरा शोर है ,
है कोई भोला कहाँ हर कोई अब मक्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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