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नूतन रामायण [भाग-दो ]

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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२५-
पहुंचे भरद्वाज आश्रम पर
सिया लखन के संग
प्रभु करुनाकर !
………………………………..
२६-
चित्रकूट पथ मुनि बताये
सिया लखन के संग राम ने
वाल्मीकि के दर्शन पाए !
…………………………
२७-
लक्षमण एक पर्णशाला बनाई
वास्तु शांति कर
सिया सहित कुटि पधारे रघुराई !
……………………………….
२८ –
इधर सुमंत्र अयोध्या आये
श्री राम का संदेसा
राजा को सुनाएँ !
……………………………..
२९-
पुत्र विरह का शोक
प्राण-त्याग दशरथ
गए परलोक !
…………………………
३० –
गुरु वशिष्ठ ने दूत पठाए
कैकेयी देश से शीघ्र
भरत – शत्रुघ्न बुलाये !
………………………………
३१-
लौट अयोध्या दोनों आये
पितृ-मृत्यु का समाचार
पाकर अकुलाये !
…………………………….
३२-
प्रिय पिता परलोकवास
चौदह बरस राम वनवास
सुनकर भरत करते विलाप !
……………………………..
३३-
लगा वज्र – आघात
भरत क्रोधित भये
धिक्कारी निज मात !
………………………………..
३४-
दैव ने दारुण दुःख दिया
भरत निभाया पुत्र धर्म
अंत्येष्टि संस्कार किया !
………………………
३५-
भरत ह्रदय में कर प्रण
श्रीराम को लौटा लाने का
चित्रकूट को किया गमन !
………………………….
३६-
भरत राम का प्रिय मिलाप
पिता- स्वर्गवास सुनकर
राम-लखन करते विलाप !
………………………….
३७-
प्रभु से करें भरत निवेदन
लौट चलो फिर अवध को
राज्य -ग्रहण करो इसी क्षण !
……………………………
३८-
राम ने धर्म मर्म समझाये
राम की चरण पादुका लेकर
भरत लौटकर अवध को आये !
…………………………….
३९-
भरत बनाकर नंदीग्राम
प्रतिनिधि बनकर करें
श्री राम के काम !
………………………….
४०-
श्री राम गए अत्रि आश्रम
दिए मात अनुसूया ने
सिया को वस्त्राभूषण !
………………………….
४१-
चले वहां से वन -घनघोर
किया विराध का वध
राम-लखन वीर सिरमौर !
……………………………..
४२-
प्रभु पहुंचे शरभंग आश्रम
देवों के दर्शन किये
किया ऋषि ने ब्रह्मलोकगमन !
……………………………..
४३-
हुई सुतीक्ष्ण से राम की भेंट
पहुंचे अगस्त्य आश्रम
ऋषि दिए शास्तास्त्र अनेक !
………………………………
४४-
पंचवटी में करो कुटि निर्माण
अगस्त्य दिए निर्देश
प्रभु किये वहां प्रस्थान !
……………………………
४५-
मिले जटायु पंचवटी के पास
लखन बनाये पर्णकुटी
सिया सहित प्रभु करें निवास !
………………………….
४६-
शूर्पनखा का हुआ आगमन
राम रूप पर रीझकर
करती प्रणय – निवेदन !
…………………………….
४७-
श्री राम ने हँसकर टाला
रूप भयंकर धर दुष्टा ने
सीता को धमका डाला !
……………………..
४८-
लखन खडग ले हाथ
नाक कान उस दुष्टा के
तत्काल दिए थे काट !
…………………………
४९-
लिए कटे नाक व् कान
क्रोधित अपमानित दुष्टा
पहुंची जनस्थान !
…………………………
५०-
दुर्दशा का कारण जान
खर-दूषण ने क्रोध में
पंचवटी को किया प्रस्थान !
……………………………………….
५१-
हुआ घोर संग्राम
खर-दूषण-त्रिसिरा मरे
जय जय जय श्री राम !

[जारी है ….]
जय सिया राम जी की

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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