! अब लिखो बिना डरे !
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हर तरफ चीखें ही चीखें चीखती इंसानियत ,
इन्सान को हैवान बनते देखती इंसानियत !
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ज़ख्म खाकर ज़ख्म देने का चढ़ा जूनून ,
हो गयी मजबूर कैसे रोकती इंसानियत ?
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दिल सभी के जल रहे बदले की आग में ,
देख क़त्ल-ओ-आम छाती पीटती इंसानियत !
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दुधमुहे बच्चों से माँ-बाप का साया छिना ,
देख मासूमों के आंसू टूटती इंसानियत !
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हँस रही हैवानियत खुनी खेल खेलकर ,
काश मुंह पर लात इसके मारती इंसानियत !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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