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निर्भया ने ली होगी सुकून की अब साँस !

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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तारिख थी सोलह
सन दो हजार बारह ,
और दिसंबर मास !
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हैवानियत की इन्तिहाँ ,
इंसानियत का क़त्ल ,
इंसानी जिस्मों में
वहशियत का वास !
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निर्भया की आहें
जख्मों पे उसकी टीसें ,
गूंजती रही हैं
आज तक आस-पास !
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दरिंदों को मिली फाँसी ,
कितना सुखद अहसास !
निर्भया ने ली होगी
सुकून की अब साँस !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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