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contestहिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला?-हाँ !

! अब लिखो बिना डरे !
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हॉकी -‘हिंदी” पीती अपमान का गरल !
अपनी ही मातृ-भाषा के प्रति भारतवासियों का जो व्यवहार है वो अत्यंत निंदनीय है .राष्ट्रिय खेल हॉकी के माध्यम से इस दर्द को ”हिंदी ” कैसे प्रकट करती है ?इसकी एक झलक देखिये –

एक दिन हॉकी मिली ;

क्षुब्ध थी ,उसे रोष था,

नयन थे अश्रु भरे

मन में बड़ा आक्रोश था .

अपमान की व्यथा-कथा

संक्षेप में उसने कही ;

धिक्कार !भारतवासियों पर

उसने कही सब अनकही .

पहले तो मुझको बनाया

देश का सिरमौर खेल ;

फिर दिया गुमनामियों के

गर्त में मुझको धकेल .

सोने से झोली भरी

वो मेरा ही दौर था ,

ध्यानचंद से जादूगर थे

मेरा रुतबा और था .

कहकर रुकी तो कंधे पर

मैं हाथ रख बोली

सुनो अब बात मेरी

हो न यूँ दुखी भोली .

अरे क्यों रो रही है अपनी दुर्दशा पर ?

कर इसे सहन

मेरी तरह ही पीती रह

अपमान का गरल

मैं ”हिंदी” हूँ बहन !

मैं” हिंदी ” हूँ बहन !!

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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