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आज घर से निकलते समय परसों हुई तेजाबी घटना की दहशत ने दिल को दहला दिया . मैंने आस-पास आज ज्यादा ध्यान दिया .कौन पास से गुजर रहा है ? इस पर ध्यान स्वयं ही चला गया .हमारे कस्बे में हुई तेजाबी घटना ने इस धारणा को तोड़ दिया कि हमारा क़स्बा इस तेजाबी आग से बचा हुआ है .तेजाबी हमले की शिकार बहने बहुत कर्मशील हैं और अपने परिवार के भरण-पोषण हेतु शिक्षिका का कार्य कर रही हैं .सात वर्ष पूर्व पिता के निधन के बाद से अपनी माता जी के साथ जीवन की विषमताओं को झेलती हुई इन बहनों पर तेजाबी हमला करते समय क्या कायर हमलावरों के हाथ नहीं कांपे ?किस माँ की कोख से पैदा होते हैं ये हैवान जो न तो किसी की जिंदगी का दर्द तो महसूस कर सकते नहीं बल्कि घर से काम के लिए निकली लड़कियों की राह का रोड़ा बन जाते हैं .किन बहनों के होते हैं ये भाई जो अपनी बहन की ओर उठी नज़र को तो फोड़ डालना चाहते हैं पर गैर लड़की को सबक सिखाने के लिए तेजाब से झुलसा डालते हैं उसकी जिंदगी .निश्चित रूप से अब बेटियों को बहुत सतर्क रहना होगा .बार बार मेरा ह्रदय उस माँ के दिल के दर्द का अंदाज़ा लगाकर रो पड़ता है जो घर से बाहर जाती बेटियों को लाखों हिदायते देकर भेजती है और जब बेटियां उन सब का पालन करने पर भी वहशियों का निशाना बनें तो माँ किस तरह अपने दिल को समझाए ! –
हवाएं शहर की अब महफूज़ नहीं हैं ,
रख दिया कलेजा माँ का चीरकर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !
घूमते हैं शख्स कई तेजाब लिए हाथ ,
तुमसे उलझ जायेंगे ये जान-बूझकर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !
बेटे नहीं किसी के न भाई किसी के ,
ये पले शैतान की गोद खेलकर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !
ज़िस्म है इन्सान का हैवान की है रूह ,
काँपती इंसानियत इनके गुनाह सुनकर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !
किस जगह मिल जाएँ कोई न ठिकाना ,
हर कदम बढ़ाना ज़रा दिल को थाम कर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !
मुंह अपना छिपाते मनहूस हमलावर ,
पहचाने कैसे कौन भागे तेजाब फेंककर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !
आँहे, आंसू ,चीखें , दर्द बाँटते हैं ये ,
आता मज़ा इनको है खुनी खेल खेलकर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !
हिफाज़त न छोड़ना मुकद्दर के भरोसे ,
ये घूमते हैं अपना ईमान बेचकर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !
हे ईश्वर !पीड़ित परिवार को इस सदमे से उबरने की शक्ति प्रदान कर और ऐसे वहशियों को फांसी पर लटकाने
का रास्ता साफ कर !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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