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क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा
!!!”रमा का चेहरा सख्त हो गया .वो फौलाद से कड़क स्वर में बोली – ”मैं उस लड़की को तुम्हारे हवाले नहीं करूंगी !!! उसकी अस्मत से खेलकर तुम्हारी बहन की इज्ज़त वापस नहीं आ जाएगी .किसी और की अस्मत लूटकर तुम्हारी बहन की अस्मत वापस मिल सकती है तो …आओ ..लो मैं खड़ी हूँ …बढ़ो और …..” ”जिज्जी !!!!!” सोनू चीख पड़ा और आकर रमा के पैरों में गिर पड़ा .सारी भीड़ तितर-बितर हो गयी .सोनू को कुछ लोग उठाकर अस्पताल ले गए .रमा पलट कर घर में ज्यों ही घुसी घर में किवाड़ की ओट में छिपी फाटे कपड़ों से बदन छिपती युवती उसके पैरों में गिर पड़ी .फफक फफक कर रोती हुई वो बोली -” आप न होती तो मेरे जिस्म को ये सारी भीड़ नोंच डालती .मैं कहीं का न रहती !’.रमा ने प्यार से उसे उठाते हुए अपनी छाती से लगा लिया .और कोमल बोली में धैर्य बंधाते हुए बोली -लाडो डर मत !! धार्मिक उन्मादों में कितनी ही बहन बेटियों की अस्मत मुझ जैसी औरतों ने बचाई है क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !!
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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