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मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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सात कांड में रची तुलसी ने ‘ मानस ‘  ;

आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?


आठवे में लिखा  जाता  सिया  का विद्रोह  ;

पर त्यागते  कैसे  श्री राम यश का मोह ?


लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ;

घटती राम-महिमा उनको था विश्वास .


अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन  ;

पूर्ण कहाँ इनके बिना होती है रामायण ?


आदिकवि  सम  देते  जानकी  का  साथ ;

अन्याय को अन्याय कहना है नहीं अपराध .


लिखा कहीं जगजननी कहीं  अधम नारी ;

मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .


तुमको दिखाया पथ वो  भी  थी एक नारी ;

फिर कैसे लिखा तुमने ये ताड़न की अधिकारी !


एक बार तो वैदेही की पीड़ा को देते स्वर ;

विस्मित हूँ क्यों सिल गए तुलसी तेरे अधर !


युगदृष्टा -लोकनायक गर ऐसे रहे मौन ;

शोषित का साथ देने को हो अग्रसर कौन ?


भूतल में क्यूँ समाई  सिया करते स्वयं मंथन ;

रच काण्ड आँठवा करते सिया का वंदन .


चूक गए त्रुटि शोधन  होगा नहीं कदापि ;

जो सत्य न लिख पाए वो लेखनी हैं पापी .



हम लिखेंगे सिया  के विद्रोह  की  कहानी ;

लेखन में नहीं चल सकेगी पुरुष की मनमानी !!


शिखा कौशिक ‘नूतन’


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