! अब लिखो बिना डरे !
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HUU LAA PAR THIRKE KADAM
नारी दुर्गा है ”चिकनी -चमेली ” नहीं !
”हू ला ला” पर थिरके कदम
”शीला-मुन्नी” पर निकले है दम
नैतिकता का है ये पतन
दूषित हो गया अंतर्मन
ओ फनकारों करो कुछ शर्म
शालीन नगमों का कर लो सृजन
फिर से सजा दो लबो पर हर दम
वन्देमातरम …..वन्देमातरम !
नारी का मान घटाओ नहीं
प्राणी है वस्तु बनाओ नहीं
तराने रचो तो रचो सोचकर
शक्ति है नारी तमाशा नहीं
नारी की महिमा का फहरे परचम
फिर से सजा दो ……….
नारी है देवी पहेली नहीं
दुर्गा है ”चिकनी -चमेली ” नहीं
इसका सम्मान जो करते नहीं
फनकारी के काबिल नहीं
बेहतर है रख दें वे अपनी कलम
फिर से सजा दो …………..
शिखा कौशिक
[विख्यात]
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